रत्न मिट्टी से ही निकलते हैं, स्वर्ण मंजुषाओं ने तो कभी एक भी रत्न उत्पन्न नहीं किया .
हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ्य रखें अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे |
शीघ्र सोने और प्रात:काल जल्दी उठने वाला मानव अरोग्यवान,भाग्यवान और ज्ञानवान होता है |
सपने देखना बेहद जरुरी है, लेकिन केवल सपने देखकर ही मंजिल को हासिल नहीं किया जा सकता, सबसे ज्यादा जरुरी है जिंदगी में खुद के लिए कोई लक्ष्य तय करना |
स्वप्न दृष्टा और यथार्थ के सृष्टा बनिए |
अभिलाषा तभी फलदायक होती है, जब वह दृढ निश्चय में परिणित कर दे जाती है |
सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं |
कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता | कर्तव्य-पालन में ही चित्त की शांति है |
Tuesday, December 6, 2011
भारत में शिक्षा और साक्षरता
साक्षरता कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य निम्नवत् हैं :-
1. पढ़ने-लिखने, अंक ज्ञान में आत्मनिर्भर होना।
2. सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के दयनीय होने के कारणों की जानकारी पाना और संगठित होकर तथा विकास कार्यक्रमों में भागीदार बनकर अपनी स्थिति को सुधारने की कोशिश करना।
3. अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए नए हुनर सीखना।
4. र1ष्ट्रीय एकता पर्यावरण की सुरक्षा, महिलाओं और पुरूषों में समानता। छोटे परिवार के आदर्शों को समझना जैसे राष्ट्रीय एवं सामाजिक मूल्यों की जानकारी पाना।
साक्षरता का तात्पर्य सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं बल्कि यह सम्मान, अवसर और विकास से जुड़ा विषय है। दुनिया में शिक्षा और ज्ञान बेहतर जीवन जीने के लिए ज़रूरी माध्यम है। आज अनपढ़ता देश की तरक्की में बहुत बड़ी बाधा है। जिसके अभिशाप से ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है।
भारत भी बन सकता है, शत प्रतिशत साक्षर।
साक्षरता दिवस का दिन हमें सोचने को मज़बूर करता है, कि हम क्यो 100% साक्षर नहीं हैं। यदि केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकि राज्यों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड दे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गाँधी साक्षरता मिशन आदि न जाने कितने अभियान चलाये गये, मगर सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली। मिड दे मील में जहाँ बच्चो को आकर्षित करने के लिए स्कूलों में भोजन की व्यवस्था की गयी, इससे बच्चे स्कूल तो आते हैं, मगर पढ़ने नहीं खाना खाने आते हैं। शिक्षक लोग पढ़ाई की जगह खाना बनवाने की फिकर में लगे रहते हैं। हमारे देश में सरकारी तौर पर जो व्यक्ति अपना नाम लिखना जानता है, वह साक्षर है। आंकड़े जुटाने के समय जो घोटाला होता है, वो किसी से छुपा नहीं है। अगर सही तरीक़े से साक्षरता के आंकडे जुटाए जाए तो देश में 64.9% लोग शायद साक्षर न हो। सरकारी आंकडो पर विश्वास कर भी लिया जाए तो भारत में 75.3% पुरुष और 53.7% महिलायें ही साक्षर हैं।
विकास के पथ पर दौड़ते कदम, प्रगतिशील समाज की रचना और भविष्य सुदृढ़ बनाने की कल्पना किसी भी राष्ट्र को सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर अग्रिम पंक्ति में खड़ा करती है. आजादी से अब तक हमने बहुमुखी विकास किया है. विकासशील देश से विकसित देश बनने की चाह ने हमको नित नवीन आयामों पर कार्य करने की प्रेरणा दी जिसका हमें फल भी मिला. लेकिन आंशिक फल के आधार पर हम पूरी राष्ट्र व्यवस्था में बदलाव नहीं ला सकते.
भारतवर्ष ! अलग – अलग समुदाओं का घरौंदा जिसका आदर्श अनेकता में एकता है हम भारतवासियों को सशक्तिकरण प्रदान करता है. भारतीय जनसंख्या खासकर युवा समुदाय की भरमार हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत है. कहना गलत नहीं होगा कि युवा देश की आधारशिला होते हैं. परन्तु जैसे की कथनी और करनी में फ़र्क होता है वैसे ही अगर युवा शक्ति का प्रयोग उचित दिशा में नहीं हुआ तो इससे विकास की बजाय विनाश हो सकता है.
सरकार की नीतियों में शामिल युवा समाज का उत्थान राष्ट्र कल्याण में एक अहम कदम था. इन नीतियों के अंतर्गत सर्व शिक्षा अभियान और साक्षरता मिशन ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जो ज्ञानवान हो वर्तमान और भविष्य से अवगत. राष्ट्र उत्थान को बल देती हुई शिक्षा जिसमें ज्ञान को आधार माना गया था. लेकिन दशकों बाद भी यह सोच केवल कल्पना मात्र रह गयी है क्योंकि आज हम साक्षर तो हैं लेकिन ज्ञान से वंचित. ज्ञानवान समाज के निर्माण की धारणा अब कोई विमर्श का विषय नहीं रह गया है. आज हम साक्षर हैं लेकिन ज्ञान से अंजान. साक्षरता और शिक्षा में सबसे बड़ा अंतर विश्लेषण क्षमता का होता है. साक्षरता का आधार शिक्षा अर्जित करना होता है और शिक्षा का आधार ज्ञान. हम पढ़ लिख तो सकते हैं लेकिन किसी चीज़ की व्याख्या नहीं कर सकते.
साक्षर भारतवासी ही भारत की शक्ति
सर्वशिक्षा अभियान, सतत् शिक्षा और शिक्षा का अधिकार जैसी कई सरकारी पहलों के बावजूद भारत में विश्व की 35 फीसदी निरक्षर आबादी भारतीयों की है, साथ ही उसकी 68 प्रतिशत साक्षरता दर, वैश्विक साक्षरता दर 84 प्रतिशत से काफी पीछे है। भारतीय साक्षरता दर में महिला-पुरूष के बीच का भेदभाव गहरा है, जहां पुरूष वयस्क साक्षरता दर 76.9 फीसदी है, वहीं महिला वयस्क साक्षरता दर महज 54.5 फीसदी है।
आजादी के बाद भारत देश में वर्ष 1950 के दौरान साक्षरता की दर 18 फीसदी थी, जो 1991 में बढ़कर 52 फीसदी हो गई। इसके बाद साक्षरता की दर 2001 में 65 फीसदी तक पहुंची, जो कि भारत सरकार के सार्थक प्रयासों से संभव हुआ और अब तो शत् प्रतिशत् साक्षर करने के लिए योजनाएं बनाई जा रही है। केन्द्र व राज्य सरकारें, शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को साक्षर करने के लिए गैर सरकारी संस्थाओं व समाज सेवी संस्थाओं की मदद ले रही है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या के केवल 54 प्रतिशत महिलाएं ही पढना लिखना जानती थी, जबकि पुरूषों में 75 प्रतिशत पढ़े लिखे थे। 15 वर्ष से ऊपर की व्यस्क महिलाओं में 47.82 प्रतिशत पढ़ लिख सकती थी। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रौढ़ महिला साक्षरता का स्तर 15 से 94 प्रतिशत् तक फर्क लिए हुए था। यह एक ऐसा अनुपात था, जिसे पूरा करने के लिए विशेष योजना बनानी पड़ी। देश के 365 जिलों में महिला साक्षरता दर 50 प्रतिशत से कम है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं में 41.90 प्रतिशत तथा 34.76 प्रतिशत पढना लिखना जानती है। सन् 2001 में पुरूष साक्षरता 78.85 प्रतिशत और महिला साक्षरता 54.16 प्रतिशत था, जबकि केरल की साक्षरता 90.92 प्रतिशत थी, जिसमें 94.20 प्रतिशत पुरूष 87.86 महिलाएं साक्षर थी। वर्ष 2001 की जनगणना ने सकारात्मक संकेत प्रदान किए। महिला साक्षरता दर में 14.38 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि पुरूष साक्षरता दर में 11.13 फीसदी की वृद्धि हुई। इससे स्पष्ट होता है कि साक्षरता के क्षेत्र में महिला पुरूष का अंतर समाप्त होता जा रहा है। वहीं प्राथमिक स्तर पर जहां 1950-51 में स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 19,200,000 थी, जो 2001-02 में बढ़कर 109,800,000 हो गई। आजादी के बाद से साक्षरता दर 1950-51 के 18.33 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 64.1 फीसदी हो गई। देश में साक्षरता दर बढने का संकेत मिलता है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि इतनी अधिक है कि हर दशक में निरक्षरों की कुल संख्या बढ़ती ही चली गई। बावजूद इसके 1991 से 2001 का दशक ऐसी अवधि रही, जब पहली बार निरक्षरों की संख्या में कमी आई। इस दशक में बिहार, नगालैंड और मणिपुर ही मात्र ऐसे राज्य थे, जहां निरक्षरों की कुल संख्या में वृद्धि हुइर्, जबकि उनके प्रतिशत में कमी आई।
राष्ट्रीय साक्षरता अभियान
राष्ट्रीय साक्षरता अभियान को 5 मई, 1988 में तकनीकी अभियान के रूप में 15-35 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए आरंभ किया गया था। इस आयु वर्ग पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया क्योंकि यह वर्ग इस समय अपने जीवन के उत्पादन एवं प्रजनन के दौर से गुजर रहा है। राष्ट्रीय साक्षरता नीति 1986 को वर्ष 1992 मेंं संशोधित किया गया था और राष्टी्रय साक्षरता अभियान को देश से निरक्षरता समाप्त करने के तीन हथियारों में से एक हथियार के रूप में मान्यता दी गई। अन्य दो हथियार प्राथमिक शिक्षा का सर्वसुलभीकरण तथा अनौपचारिक शिक्षा है। इस अभियान का उद्देश्य 15-35 वर्ष की आयु वर्ग के आठ करोड़ निरक्षर लोगों को साक्षर बनाना था। वर्ष 1991 तक 3 करोड़ तथा वर्ष 2001 तक 5 करोड़ लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि वर्ष 2001 तक अभियान के द्वारा 75 प्रतिशत लोगों का साक्षर बनाया गया है।अभियान में 9-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को भी शामिल किया गया है। ये उस क्षेत्र में आते है जहां पर अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम नहीं चलाये जाते तथा इसके द्वारा विद्यालय न जाने वाले छात्रों को भी लाभ पंहुचाना है। इन कार्यक्रमों का मुख्य ज़ोर महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों में साक्षरता को बढ़ावा देना है।राष्ट्रीय साक्षरता अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सतत शिक्षा को संपूर्ण साक्षरता अभियान और उसके बाद साक्षरता उपरांत कार्यक्रमों के ज़रिये जारी रखा जाए, जो लंबे समय तक शिक्षा मुहैया कराये तथा शिक्षित समाज के निर्माण में अपनी ज़िम्मेदारी निभाये।
संपूर्ण साक्षरता अभियान
देश से निरक्षरता को समाप्त करने के लिए संपूर्ण साक्षरता अभियान राष्ट्रीय साक्षरता अभियान की एक प्रमुख रणनीति है। इस कार्यक्रम में कुछ सकारात्मक गुण भी है जैसे, क्षेत्र विशेष पर आधारित, समयबद्धता, सहभागिता, लागत में सस्ता और परिणाम देने वाला। यह अभियान पूर्व निर्धारित साक्षरता को प्राप्त करने पर जोर देता हैं। इस अभियान को सभी के लिए नामांकन तथा विद्यालय में उपस्थिति, प्रतिरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण आदि जैसी अन्य गतिविधियों से जोड़ा गया है। संपूर्ण साक्षरता अभियान की अवधि 12 से 18 महीने मानी गई है जिसमें से आधी अवधि तैयारी के लिए और बाकी की आधी वास्तविक अध्यापन एवं पढ़ाई के लिए है। जो क्षेत्र अत्यंत दुर्गम है वहां पर उचित रूप से इस अवधि का विस्तार किया जा सकता है। इस अभियान की पूरी अवधि के दौरान दो कार्यक्रमों पर्यावरण निर्माण तथा निगरानी के साथ-साथ आतंरिक मूल्यांकन को जारी रखा जाएगा।पर्यावरण निर्माण कार्यक्रम की आरंभिक गतिविधियों को प्रत्येक घर के सर्वेक्षण के आधार पर चलाया जाएगा ताकि पढ़ने वालों की क्षमताओं की पहचान की जा सके। वयस्क शिक्षा के लिए राज्य संसाधन केंद्रों के ज़रिए तीन चरणों में उचित सर्वश्रेष्ठों का विकास किया जाएगा। इसमें सुधरी हुई गति एवं अध्ययन के तत्वों की नई तकनीकों की सहायता ली जाएगी।संपूर्ण साक्षरता अभियान की तीन चरण वाली प्रबंधन संरचना में ज़िलो से लेकर ग्रामीण स्तर तक की लोकप्रिय समितियां हैं। इनमें ज़िला साक्षरता समितियां, जिनको उप-समितियों के द्वारा समर्थन दिया जा रहा है, ज़िला एवं ब्लॉक स्तरीय प्रशासन के अधिकारी शामिल है।साक्षरता अभियानों को ज़िला साक्षरता समितियों के द्वारा लागू किया जा रहा है। इनकी अध्यक्षता सामान्यत: ज़िला कलेक्टरों के द्वारा की जा रही है। सामान्य ज़िलों में केंद्र तथा राज्य सरकार के अधिकारियों का अनुपात 2 :1 है और जनजातिय क्षेत्रों में यह अनुपात 4 : 1 है। इस कार्यक्रम के तहत अध्यापन पर 90-180 रूपये का खर्चा आता है।
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान माध्यमिक शिक्षा
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान माध्यमिक शिक्षा के लिए नई पहलें की जा रही हैं जिनमें स्कूलों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी भी शामिल है। राज्य सरकार तथा निजी भागीदारी के साथ स्कूलों में एक संशोधित सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी योजना को लागू किया जाएगा। यह योजना एक लाख स्कूलों से भी ज्यादा सरकारी, स्थानीय निकायों तथा सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में ब्राॉडबैण्ड संपर्कता के साथ सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी साक्षरता एवं कम्प्यूटरीकृत शिक्षा मुहैया करायेगी। प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर पर भी कम्प्यूटरीकृत शिक्षा आरंभ करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं।
1. पढ़ने-लिखने, अंक ज्ञान में आत्मनिर्भर होना।
2. सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के दयनीय होने के कारणों की जानकारी पाना और संगठित होकर तथा विकास कार्यक्रमों में भागीदार बनकर अपनी स्थिति को सुधारने की कोशिश करना।
3. अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए नए हुनर सीखना।
4. र1ष्ट्रीय एकता पर्यावरण की सुरक्षा, महिलाओं और पुरूषों में समानता। छोटे परिवार के आदर्शों को समझना जैसे राष्ट्रीय एवं सामाजिक मूल्यों की जानकारी पाना।
साक्षरता का तात्पर्य सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं बल्कि यह सम्मान, अवसर और विकास से जुड़ा विषय है। दुनिया में शिक्षा और ज्ञान बेहतर जीवन जीने के लिए ज़रूरी माध्यम है। आज अनपढ़ता देश की तरक्की में बहुत बड़ी बाधा है। जिसके अभिशाप से ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है।
भारत भी बन सकता है, शत प्रतिशत साक्षर।
साक्षरता दिवस का दिन हमें सोचने को मज़बूर करता है, कि हम क्यो 100% साक्षर नहीं हैं। यदि केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकि राज्यों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड दे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गाँधी साक्षरता मिशन आदि न जाने कितने अभियान चलाये गये, मगर सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली। मिड दे मील में जहाँ बच्चो को आकर्षित करने के लिए स्कूलों में भोजन की व्यवस्था की गयी, इससे बच्चे स्कूल तो आते हैं, मगर पढ़ने नहीं खाना खाने आते हैं। शिक्षक लोग पढ़ाई की जगह खाना बनवाने की फिकर में लगे रहते हैं। हमारे देश में सरकारी तौर पर जो व्यक्ति अपना नाम लिखना जानता है, वह साक्षर है। आंकड़े जुटाने के समय जो घोटाला होता है, वो किसी से छुपा नहीं है। अगर सही तरीक़े से साक्षरता के आंकडे जुटाए जाए तो देश में 64.9% लोग शायद साक्षर न हो। सरकारी आंकडो पर विश्वास कर भी लिया जाए तो भारत में 75.3% पुरुष और 53.7% महिलायें ही साक्षर हैं।
विकास के पथ पर दौड़ते कदम, प्रगतिशील समाज की रचना और भविष्य सुदृढ़ बनाने की कल्पना किसी भी राष्ट्र को सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर अग्रिम पंक्ति में खड़ा करती है. आजादी से अब तक हमने बहुमुखी विकास किया है. विकासशील देश से विकसित देश बनने की चाह ने हमको नित नवीन आयामों पर कार्य करने की प्रेरणा दी जिसका हमें फल भी मिला. लेकिन आंशिक फल के आधार पर हम पूरी राष्ट्र व्यवस्था में बदलाव नहीं ला सकते.
भारतवर्ष ! अलग – अलग समुदाओं का घरौंदा जिसका आदर्श अनेकता में एकता है हम भारतवासियों को सशक्तिकरण प्रदान करता है. भारतीय जनसंख्या खासकर युवा समुदाय की भरमार हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत है. कहना गलत नहीं होगा कि युवा देश की आधारशिला होते हैं. परन्तु जैसे की कथनी और करनी में फ़र्क होता है वैसे ही अगर युवा शक्ति का प्रयोग उचित दिशा में नहीं हुआ तो इससे विकास की बजाय विनाश हो सकता है.
सरकार की नीतियों में शामिल युवा समाज का उत्थान राष्ट्र कल्याण में एक अहम कदम था. इन नीतियों के अंतर्गत सर्व शिक्षा अभियान और साक्षरता मिशन ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जो ज्ञानवान हो वर्तमान और भविष्य से अवगत. राष्ट्र उत्थान को बल देती हुई शिक्षा जिसमें ज्ञान को आधार माना गया था. लेकिन दशकों बाद भी यह सोच केवल कल्पना मात्र रह गयी है क्योंकि आज हम साक्षर तो हैं लेकिन ज्ञान से वंचित. ज्ञानवान समाज के निर्माण की धारणा अब कोई विमर्श का विषय नहीं रह गया है. आज हम साक्षर हैं लेकिन ज्ञान से अंजान. साक्षरता और शिक्षा में सबसे बड़ा अंतर विश्लेषण क्षमता का होता है. साक्षरता का आधार शिक्षा अर्जित करना होता है और शिक्षा का आधार ज्ञान. हम पढ़ लिख तो सकते हैं लेकिन किसी चीज़ की व्याख्या नहीं कर सकते.
साक्षर भारतवासी ही भारत की शक्ति
सर्वशिक्षा अभियान, सतत् शिक्षा और शिक्षा का अधिकार जैसी कई सरकारी पहलों के बावजूद भारत में विश्व की 35 फीसदी निरक्षर आबादी भारतीयों की है, साथ ही उसकी 68 प्रतिशत साक्षरता दर, वैश्विक साक्षरता दर 84 प्रतिशत से काफी पीछे है। भारतीय साक्षरता दर में महिला-पुरूष के बीच का भेदभाव गहरा है, जहां पुरूष वयस्क साक्षरता दर 76.9 फीसदी है, वहीं महिला वयस्क साक्षरता दर महज 54.5 फीसदी है।
आजादी के बाद भारत देश में वर्ष 1950 के दौरान साक्षरता की दर 18 फीसदी थी, जो 1991 में बढ़कर 52 फीसदी हो गई। इसके बाद साक्षरता की दर 2001 में 65 फीसदी तक पहुंची, जो कि भारत सरकार के सार्थक प्रयासों से संभव हुआ और अब तो शत् प्रतिशत् साक्षर करने के लिए योजनाएं बनाई जा रही है। केन्द्र व राज्य सरकारें, शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को साक्षर करने के लिए गैर सरकारी संस्थाओं व समाज सेवी संस्थाओं की मदद ले रही है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या के केवल 54 प्रतिशत महिलाएं ही पढना लिखना जानती थी, जबकि पुरूषों में 75 प्रतिशत पढ़े लिखे थे। 15 वर्ष से ऊपर की व्यस्क महिलाओं में 47.82 प्रतिशत पढ़ लिख सकती थी। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रौढ़ महिला साक्षरता का स्तर 15 से 94 प्रतिशत् तक फर्क लिए हुए था। यह एक ऐसा अनुपात था, जिसे पूरा करने के लिए विशेष योजना बनानी पड़ी। देश के 365 जिलों में महिला साक्षरता दर 50 प्रतिशत से कम है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं में 41.90 प्रतिशत तथा 34.76 प्रतिशत पढना लिखना जानती है। सन् 2001 में पुरूष साक्षरता 78.85 प्रतिशत और महिला साक्षरता 54.16 प्रतिशत था, जबकि केरल की साक्षरता 90.92 प्रतिशत थी, जिसमें 94.20 प्रतिशत पुरूष 87.86 महिलाएं साक्षर थी। वर्ष 2001 की जनगणना ने सकारात्मक संकेत प्रदान किए। महिला साक्षरता दर में 14.38 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि पुरूष साक्षरता दर में 11.13 फीसदी की वृद्धि हुई। इससे स्पष्ट होता है कि साक्षरता के क्षेत्र में महिला पुरूष का अंतर समाप्त होता जा रहा है। वहीं प्राथमिक स्तर पर जहां 1950-51 में स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 19,200,000 थी, जो 2001-02 में बढ़कर 109,800,000 हो गई। आजादी के बाद से साक्षरता दर 1950-51 के 18.33 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 64.1 फीसदी हो गई। देश में साक्षरता दर बढने का संकेत मिलता है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि इतनी अधिक है कि हर दशक में निरक्षरों की कुल संख्या बढ़ती ही चली गई। बावजूद इसके 1991 से 2001 का दशक ऐसी अवधि रही, जब पहली बार निरक्षरों की संख्या में कमी आई। इस दशक में बिहार, नगालैंड और मणिपुर ही मात्र ऐसे राज्य थे, जहां निरक्षरों की कुल संख्या में वृद्धि हुइर्, जबकि उनके प्रतिशत में कमी आई।
राष्ट्रीय साक्षरता अभियान
राष्ट्रीय साक्षरता अभियान को 5 मई, 1988 में तकनीकी अभियान के रूप में 15-35 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए आरंभ किया गया था। इस आयु वर्ग पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया क्योंकि यह वर्ग इस समय अपने जीवन के उत्पादन एवं प्रजनन के दौर से गुजर रहा है। राष्ट्रीय साक्षरता नीति 1986 को वर्ष 1992 मेंं संशोधित किया गया था और राष्टी्रय साक्षरता अभियान को देश से निरक्षरता समाप्त करने के तीन हथियारों में से एक हथियार के रूप में मान्यता दी गई। अन्य दो हथियार प्राथमिक शिक्षा का सर्वसुलभीकरण तथा अनौपचारिक शिक्षा है। इस अभियान का उद्देश्य 15-35 वर्ष की आयु वर्ग के आठ करोड़ निरक्षर लोगों को साक्षर बनाना था। वर्ष 1991 तक 3 करोड़ तथा वर्ष 2001 तक 5 करोड़ लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि वर्ष 2001 तक अभियान के द्वारा 75 प्रतिशत लोगों का साक्षर बनाया गया है।अभियान में 9-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को भी शामिल किया गया है। ये उस क्षेत्र में आते है जहां पर अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम नहीं चलाये जाते तथा इसके द्वारा विद्यालय न जाने वाले छात्रों को भी लाभ पंहुचाना है। इन कार्यक्रमों का मुख्य ज़ोर महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों में साक्षरता को बढ़ावा देना है।राष्ट्रीय साक्षरता अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सतत शिक्षा को संपूर्ण साक्षरता अभियान और उसके बाद साक्षरता उपरांत कार्यक्रमों के ज़रिये जारी रखा जाए, जो लंबे समय तक शिक्षा मुहैया कराये तथा शिक्षित समाज के निर्माण में अपनी ज़िम्मेदारी निभाये।
संपूर्ण साक्षरता अभियान
देश से निरक्षरता को समाप्त करने के लिए संपूर्ण साक्षरता अभियान राष्ट्रीय साक्षरता अभियान की एक प्रमुख रणनीति है। इस कार्यक्रम में कुछ सकारात्मक गुण भी है जैसे, क्षेत्र विशेष पर आधारित, समयबद्धता, सहभागिता, लागत में सस्ता और परिणाम देने वाला। यह अभियान पूर्व निर्धारित साक्षरता को प्राप्त करने पर जोर देता हैं। इस अभियान को सभी के लिए नामांकन तथा विद्यालय में उपस्थिति, प्रतिरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण आदि जैसी अन्य गतिविधियों से जोड़ा गया है। संपूर्ण साक्षरता अभियान की अवधि 12 से 18 महीने मानी गई है जिसमें से आधी अवधि तैयारी के लिए और बाकी की आधी वास्तविक अध्यापन एवं पढ़ाई के लिए है। जो क्षेत्र अत्यंत दुर्गम है वहां पर उचित रूप से इस अवधि का विस्तार किया जा सकता है। इस अभियान की पूरी अवधि के दौरान दो कार्यक्रमों पर्यावरण निर्माण तथा निगरानी के साथ-साथ आतंरिक मूल्यांकन को जारी रखा जाएगा।पर्यावरण निर्माण कार्यक्रम की आरंभिक गतिविधियों को प्रत्येक घर के सर्वेक्षण के आधार पर चलाया जाएगा ताकि पढ़ने वालों की क्षमताओं की पहचान की जा सके। वयस्क शिक्षा के लिए राज्य संसाधन केंद्रों के ज़रिए तीन चरणों में उचित सर्वश्रेष्ठों का विकास किया जाएगा। इसमें सुधरी हुई गति एवं अध्ययन के तत्वों की नई तकनीकों की सहायता ली जाएगी।संपूर्ण साक्षरता अभियान की तीन चरण वाली प्रबंधन संरचना में ज़िलो से लेकर ग्रामीण स्तर तक की लोकप्रिय समितियां हैं। इनमें ज़िला साक्षरता समितियां, जिनको उप-समितियों के द्वारा समर्थन दिया जा रहा है, ज़िला एवं ब्लॉक स्तरीय प्रशासन के अधिकारी शामिल है।साक्षरता अभियानों को ज़िला साक्षरता समितियों के द्वारा लागू किया जा रहा है। इनकी अध्यक्षता सामान्यत: ज़िला कलेक्टरों के द्वारा की जा रही है। सामान्य ज़िलों में केंद्र तथा राज्य सरकार के अधिकारियों का अनुपात 2 :1 है और जनजातिय क्षेत्रों में यह अनुपात 4 : 1 है। इस कार्यक्रम के तहत अध्यापन पर 90-180 रूपये का खर्चा आता है।
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान माध्यमिक शिक्षा
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान माध्यमिक शिक्षा के लिए नई पहलें की जा रही हैं जिनमें स्कूलों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी भी शामिल है। राज्य सरकार तथा निजी भागीदारी के साथ स्कूलों में एक संशोधित सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी योजना को लागू किया जाएगा। यह योजना एक लाख स्कूलों से भी ज्यादा सरकारी, स्थानीय निकायों तथा सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में ब्राॉडबैण्ड संपर्कता के साथ सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी साक्षरता एवं कम्प्यूटरीकृत शिक्षा मुहैया करायेगी। प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर पर भी कम्प्यूटरीकृत शिक्षा आरंभ करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं।
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